Skip to main content
आज़ाद नज़्म
पेड़ कब मेरा साया बन सके
धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले
आफताब पाने की चाहत में
नजाने  कितने ज़ख्म मिले
एक तू गर नहीं  होता
फर्क किस्मत में भला क्या होता
मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे
तेरे हिस्से में मेहताब मिले
एक लिबास डाल के बरसो चले
एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए
ना दिल होता तो दर्द भी ना होता
एक कज़ा लेके हम चलते चले -----
आराधना  राय
कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

Comments

Popular posts from this blog

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना