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नज्म याद आता है


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साभार गुगल




सुबह होते ही तू याद आता है
ए जालिम तू कितना सताता है

ना मिला वो कोई रंज नहीं
उसका दुख रह रह के बताता है

यूँ तो मेरा वो लगता कोई नहीं 
उसका मेरा सदियों का नाता है


ना मिला वो कोई रंज नहीं
उसका दुख रह रह के बताता है


आराधना राय

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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

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