हाथो पे लिखी हर
तहरीर को मिटा रही हूँ
अपने हाथों से तेरी
तस्वीर मिटा रही हूँ
खुशबु ए हिना से
ख़ुद को बहला रही हूँ
हिना ए रंग मेरा
लहू है ये कहला रही हूँ
दहेज़ क्या दूँ उन्हें मैं
खुद सुर्ख रूह हो गई
चार हर्फ चांदी से मेहर
के किसको दिखला रही हूँ
सौगात मिली चाँद रात
चाँद अब ना रहेगा साथ
खुद से खुद की अना को
"अरु" बतला रही हूँ
आराधना राय "अरु"
तहरीर को मिटा रही हूँ
अपने हाथों से तेरी
तस्वीर मिटा रही हूँ
खुशबु ए हिना से
ख़ुद को बहला रही हूँ
हिना ए रंग मेरा
लहू है ये कहला रही हूँ
दहेज़ क्या दूँ उन्हें मैं
खुद सुर्ख रूह हो गई
चार हर्फ चांदी से मेहर
के किसको दिखला रही हूँ
सौगात मिली चाँद रात
चाँद अब ना रहेगा साथ
खुद से खुद की अना को
"अरु" बतला रही हूँ
आराधना राय "अरु"
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