गरज़ कर बादलों को बरसते देखा
सूरज को छिपते आकाश में देखा
कन्धों से आंचल को उतरते देखा
हया को बेहयाई बना कर भी देखा
दाग़ दामन में कितने लगे ये देखा
माँ, बेटियों कि लाज़ उतरते देखा
देव तुझे ना आसमां से उतरते देखा
आँसुओं का दर्द ढल पिधलते ही देखा
वेदना मूक थी क्या किसीने ना देखा
पिता, पुत्र को सदाचारी बनते हुए देखा
दुर्योधनों को ना कभी संवारते हुए देखा
पूजते मंदिरों में देवी घंटों तक उन्हें देखा
लाज़ नारी कि लूट- कभी बिलखते देखा
"अरु" जीवन को सहन कर जलते देखा
बाज़ार के खिलोनों की तरह बिकते देखा
आराधना राय "अरु"
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