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नज़्म जिंदगी


साभार गुगल





नज़्म


जिंदगी मेरी ग़ज़ल हुई
तुझसे बिछडने के बाद

रात कि मेरे सहर न हुई
चाँद निकलने के बाद

दिल ने सिर्फ तेरी सुनी
अश्क बार होने के बाद

मर्ज़ मेरा लाइलाज रहा
दिले- बर्बाद होने के बाद

आँच दिल को जलाती रही
दीप की लो बन जाने के बाद

जिंदगी मुझे म्यसर ना हुई
तिरे चले जाने के बाद

सुनी अनसुनी  सब रह गई 
"अरु"  शबे जिंदगी चले  के बाद

आराधना राय "अरु"






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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना