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ग़ज़ल मंच की बात




30 जनवरी 2016 इस मुबारक दिन को प्रतिभा -मंच की  कामयाबी का जश्न कहा जाए तो ठीक ही होगा । गुलदस्ता -ए -ग़ज़ल , प्रतिभा मंच का यह पहला काव्य साँझा काव्य संग्रह है। यह अपनी तरह का पहला संकलन है,गौर करने की बात है , इसमें उर्दू की सभी गज़ल - हिंदी कविता देवनागरी लिपि में है।  अपने आप में अनमोल खास -और आम अवाम ( जनता )  की बात कहती ग़ज़ल वतन- परस्त शायर असद निज़ामी साहब के संपादन में 84 कलमकारों की आवाज़ है। 
"उर्दू को हिंदी की जुबां से सुनिए" की आवाज़ को तीन महीने पहले असद निज़ामी साहब ने बुलंद हो कर एक
 हिंदी को उर्दू अदब के साथ जोड़ कर वह्ट्स एप पर ग्रुप बनाया जो करीब एक हफ्ते में फेसबुक पर प्रतिभा-मंच
के नाम से पहले दिन एक घंटे में 1500  लोगों से जुड़ गया । आज इस में करीब 16000 लोग हैजो अपनी मर्ज़ी से जुड़े है। सीधी -साधी जुबां में कहूँ तो हिंदी और उर्दू के माँ- और मौसी के रिश्ते की तरह, गैर मुस्लिम- और मुस्लिम दोनो एक छत के नीचे ज़मा है। जो आज की तारीख में हिंदू -मुस्लिम एकता की बात कहते है । 

प्रतिभा-मंच में खासा इंतजाम  किया गया ग़ज़ल सीखने और सीखाने का जो रोज़ाना फिलबदी और एक मतला एक शेर जैसे कार्यकर्म के तहत हुआ । जो सफलता पूर्वक जो प्रतिभा-मंच की ऑनलाइन इन्टरनेशनल मैगजीन के रूप में सामने आया है। असद निजामी जो चीफ एडमिन है  ग्रुप के और महासचिव है,प्रतिभा-मंच फाउंडेशन 
(सामाजिक एवं साहित्यिक संस्था ) चलाने के साथ असद साहब- संत कबीर सेवा समिति  बनारस के पीस पार्टी के इंचार्ज है। 
गुलदस्ता ए ग़ज़ल के शोअरा हिन्द से पाक ,ब्राजील , मलेशिया, साउदी अरब तक  फैले है। 

गुलदस्ता -ए ग़ज़ल का जश्न -ए इजरा  (  लोकार्पण समारोह )  दिल्ली में कामयाबी के साथ ग़ालिब अकादमी निज़ामुऊदीन पर संपन्न हुआ ।   इस मौके पर उर्दू विशिष्ट अथिति रहे डॉ माजिद देवबंदी,जो चेयरमैन उर्दू
अकादमी दिल्ली है, अध्यक्षता डॉ आनन्द सुमन सिंह ने की जो "सरस्वती सुमन" के संपादक है इस मौके पर अन्य सम्मानित सदस्य रहे श्रीउद्भ्रत पूर्व निदेशक दूरदर्शन , श्री किशोर श्रीवास्तव जी, श्री महमूद खान जी प्रवक्ता राज्य मंत्री, सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीरामेश्वर काम्बोज "हिमांशु" जी साथ में सफल नायक  श्रीअतहर खान, आयोजक और अध्यक्ष -प्रतिभा-मंच फाउंडेशन महासचिव श्री असद निज़ामी जी। 
              "यह सफर है , ग़ज़ल से अवाम तक का जहाँ दिल से जुड़ा है सारा जहान"। 

    


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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना