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कविता तब की जब "अना"नाम से लिखा पर "अना कासिमी से परिचय के बाद जाना की वो भी "अना है तब से मैं "अरु " नाम से लिख रही हूँ
पैमाने और पैमानों के ऊपर कसी गई
जूनून -ए जंग ऐसा की मौत से लड़ गई
कांच के महलों में ,ये दीवानगी हो गई
मेरी कहानी हर दरीचे को पता हो गई
मैं रूह थी मेरा ना कोई मक़ाम रहा
ज़र्रे ज़र्रे , बिखरी और निखर गई
देर से जाना, अपने हिज़र का अंजाम
सुबह होने तक मैं अपनी ज़बा खुद हो गई

क्या कहे "अना" अपनी हम तुमसे
खुद रोई मेरी दास्ता और फना हो गई
आराधना राय "अरु"
Tulika ग़ज़ल ,गीत ,नग्मे ,किस्से कहानियों का संसार

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना