कविता तब की जब "अना"नाम से लिखा पर "अना कासिमी से परिचय के बाद जाना की वो भी "अना है तब से मैं "अरु " नाम से लिख रही हूँ
पैमाने और पैमानों के ऊपर कसी गई
जूनून -ए जंग ऐसा की मौत से लड़ गई
जूनून -ए जंग ऐसा की मौत से लड़ गई
कांच के महलों में ,ये दीवानगी हो गई
मेरी कहानी हर दरीचे को पता हो गई
मेरी कहानी हर दरीचे को पता हो गई
मैं रूह थी मेरा ना कोई मक़ाम रहा
ज़र्रे ज़र्रे , बिखरी और निखर गई
ज़र्रे ज़र्रे , बिखरी और निखर गई
देर से जाना, अपने हिज़र का अंजाम
सुबह होने तक मैं अपनी ज़बा खुद हो गई
सुबह होने तक मैं अपनी ज़बा खुद हो गई
क्या कहे "अना" अपनी हम तुमसे
खुद रोई मेरी दास्ता और फना हो गई
आराधना राय "अरु"
Tulika ग़ज़ल ,गीत ,नग्मे ,किस्से कहानियों का संसार
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