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पूजा करने वालों को

कविता
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कब तक साहित्य की पूजा करने वालों को
फुटपाथ मिलेगा
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जीते जी ज़लने वालों को केवल
भूखा पेट मिलेगा
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धरा की बेटी को कब तक सामाजिक
अपमान मिलेगा
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नव- सृज़न करने वालों को केवल
क्या बाज़ार मिलेगा
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सूर्य परिक्रमा करती धरती को कभी
व्योम का साथ मिलेगा
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नारी- का अपमान कर चुके पुरुषों को ईश्वर सम
पूज कर सम्मान मिलेगा
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मुरझाए फूलों को क्या इस जीवन में
जीने का अधिकार मिलेगा
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पाखंड करते लोगों को केवल अब
भ्रमित संसार मिलेगा
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हाथ कटोरा भीख मांगती इस दुनियाँ को
क्या ईश्वर तेरा साथ मिलेगा
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वर्जनाओ पर टिकी इस दुनियाँ को
केवल हाहाकार मिलेगा
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मस्तक पर चन्दन रख मिथ्या कहने वालों को
केवल बाज़ार मिलेगा
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"अरु" सत्य नहीं बिकता जीवन के रण में चलता है
साथ ईश्वर बन के,अभय- सा जीवन वरदान मिलेगा
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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना