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आवाज़

लिखती तो कविता ही हूँ , आज अपनी ग़ज़लनुमा कविता की बात करती हूँ।
आवाज़
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उन के दरों -दीवार की बातें करें
दिल से दिल मिलाने की बातें करें
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कल तलक रहे बिल्कुल बे- आवाज़
आज उन के दीदार की बातें करें
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ज़मी चुप है,आसमां बड़ा खामोश
सख्त होते हालात की बातें करें
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मातम का होता है बस इक बहाना
शब-ए -गम में क्या मौंत की बातें करें
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हर एक कोई होता नहीं है मेहरबान
बेरहम दुनियाँ की क्या बातें करें
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दुख से मिलकर दुख का बादल छँटता
माँ के आँचल के सकूँ की बातें करें
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भूख से ऊंचा रहेगा सदा ही ईमान
बेबसी, भूख की क्या बातें करें
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हम भी है कायल तेरे ए आसमान
अरु देश के बदहालात की क्या बातें करें
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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना