Skip to main content

आये है



भ्रम है उन्हें की वो खुदा बन कर आये है
कर्म कर ना सके जो कर्मवीर बन आये है

लगा के आग दामन में अब बचाने आये है
सुना के राज़ दिल का  दिल लगाने आये है

दुनियाँ -ए- दीन की खबर हमको देने आये है
लूटा के आशियाँ दिल का अपना बनाने आये है

देखती है आँखे ख़ामोशी से रात को जो ख़्वाब
खुदा के नाम पे " अरु " को सताने फिर आये है
आराधना राय "अरु"

Comments

Popular posts from this blog

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना