Skip to main content

तंज़

तंज़
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
वो कहते है बात करना छोड़ दो
आपस में रिश्ता रखना छोड़ दो 
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
मंदिर में भगवान को पूज कर
मस्जिद में कुरान पढ़ना छोड़ दो
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
तलवार मंदिर को करते हो भेंट
मानवता का पाठ पढ़ना छोड़ दो
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
बातें अनर्गल करते है रहे वो खुद
इंसान को इंसान कहना छोड़ दो
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
खा रहे जो नेता इंसानो को रोज़
वो कहते है मांस खाना छोड़ दो
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
हिन्दू से राम मुस्लिम से अल्ल्हा
धर्म से अब मज़ाक करना छोड़ दो
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
धर्म की आड़ में मज़हब के नाम पे
हो रहा आतंकवाद अब तो छोड़ दो
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
मेरी धरती है स्वर्ग पनपे हज़ारो धर्म
एक दूसरे पर तीर चलना अब छोड़ दो
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
गीता पे अंकुश कुरान पे वार जो करे
ऐसे नेताओं को अख़बार में पढ़ना छोड़ दो
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
उठ रहा है नींद से अभी तो सारा संसार
मानवता की बात "अरु" करना ना छोड़ दो
आराधना राय "अरु"

Comments

Popular posts from this blog

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना