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क्या बताए तुझे



क्या बताए तुझे 
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मेरी ज़िन्दगी के  
हालात तंग थे 
इसलिए मेरे रिश्तों 
कि मौत हो गई। 
ज़िंदगी में नाकाम रहे 
रिश्ते भी हम पे कुछ 
बोझ ही रहे। 
मेरी चादर  ही तंग थी 
लेना -देना ना कभी 
सलीक़े से आया हमें 
मुझ से मेरे रिश्तों को 
परेशानी यही थी ,
दिल कि दौलत की 
मेरे पास यू तो कमी 
नहीं थी। 
दुनियाँ का कारोबार 
जिस से चलें वो 
दौलत नहीं थी। 
ख़्वाब है उन कि 
क़ीमत  ही क्या है 
मेरी नाकामियों में
वो भी अब बिकते
नहीं कहीं।
क्या बताए तुझे
ज़िंदगी रिश्तों के
साथ ही नहीं  चल पाए
हम कभी।
आराधना राय  "अरु"
Aradhana ©    



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