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ना बिकना आया


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           ना बिकना आया 
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लोग बिक जाते है बस पल -दो पल में ही  
हमें ना इस तरह बाज़ार में बिकना आया 

राह चलतों से बात क्या हम अपनी यू करें 
 जिन्हें नज़रिया भी ना बदलना कभी आया 

अपने ख्वाबों को उम्मीदों के सर ही करते है
रोज़ सिक्कों कि तरह हमें ना बदलना आया  

वो खुश रहे उन्होंने बेंच दी दूसरों कि भी अना 
हमकों दूसरों कि बर्बादियों पे ना हँसना आया 

आराधना राय 

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अना --स्वाभिमान , 




 

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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना