Skip to main content

बात हुई



साभार गूगल

कौन जानें क्या कब ये बात हुई
तुझ से यूँ ही नहीं मुलाक़ात हुई

कहीं जब झूम के गाता है सावन
किसकी आँखों से ये बरसात हुई

तन पे बारिश कि कैसी छींट पड़ी
मन कि अपने आप से ये बात हुई

रंग कच्चे होते तो निकल जाते युहीं
ताउम्र ना निकले ये अज़ब बात हुई

अब के बरसात में हलचल ख़ास हुई
घर में "अरु" बिज़लियाँ मेहमान हुई
आराधना राय "अरु"
Rai Aradhana ©




































Comments

Popular posts from this blog

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना