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ख्याल

                       

             ख्याल
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आज कल लोग बिना बात ही यू  बदनाम करते है
उसूलन हम भी उन्हें ही तो जा कर सलाम करते है

ये और बात है लोग इश्क़ कि  बात यू ही करते है
बिना बात के वो ही बस हर बार सवालात करते है

है बहुत मुश्किल उनको ही यू भी ये अब  समझाना
जो किसी के दिल का भी अब ख्याल ही नहीं रखते है

हमें  गम हो के ना हो अब यू ही हम दरकार रखते है
पशेमां क्यू हो उन से "अरु" समझ बरक़रार रखते है
आराधना राय

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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना