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آرزو आरज़ू

साभार गूगल

तज्दीद-ए-आरज़ू
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जिसे भूले ही नहीं याद क्या उसको करें
उसकी हर बात दिल में ही बसा रखी है

हर लम्हा उसे सोचते ही गुज़रता रहा यूँ
जैसे सहरा से कोई आबशार हो निकला

उसकी बातें में तज्दीद-ए-आरज़ू है तेरी
उसका ज़िक्र 'अरु' लगता है फरिश्तों सा

आराधन राय 'अरु '
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Renewing desire- तज्दीद-ए-आरज़ू, इच्छा,



       آرزو  
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جسے بھولے ہی نہیں یاد کیا اس کو کریں

اس کی ہر بات دل میں ہی حل رکھی ہے

ہر لمحہ اس خیال ہی گزرتا رہا یوں
اس کی باتیں میں تجدید-اے-آرزو ہے تیری
جیسے صحرا سے کوئی آبشار ہو نکلا
اس کا ذکر 'ار' لگتا ہے فرشتوں سا
آرادن رائے 'ار'

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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना