सखी ,मित्र
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सुधियों के आँगन में मुस्कुराता है
गीत सा कोई यू ही गुनगुनाता है
उर में जो वह बसा कब का हुआ है
मेरे संग ही तो वह प्रतिपल रहा है
सखी तुम्हारी स्मृति सा वह यू तो है
प्रेम तुम्हारा उसमें ही अब साकार है
स्वपन का कोई वो नया सा आकाश है
ना जाने किस रीत का वह ही आधार है
प्रणय -सिंधु सा है वो ही अचल हुआ है
प्रीत कि धरोहर हिय में ही सजल हुआ है
"अरु "नयनों में वो ही तो छाया हुआ है
आराधना राय
Rai Aradhana ©
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