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دورदूर


साभार गूगल



दूर बहुत दूर जाना था
मुझे तेरी दुनियाँ में यूँ लौट के ना आना था

सख्त राहों पे चल कर
मुझे क्यों तेरे पास ही चल के यूँ आना था

तंग हालत के मारे थे
हमें क्या यूँ हँस के 'अरु' तुझे ही समझाना था
आराधना राय 'अरु'
   



دور بہت دور جانا تھا
امجھے تیری دنیا میں یوں لوٹ کے نہ آنا تھا

سخت راہوں پہ چل کر
مجھے کیوں تیرے پاس ہی چل کے یوں آنا تھا

تنگ حالت کے مارے تھے
ہمیں کیا یوں ہنس کے 'ار' تجھے ہی سمجھانا تھا
ارادھنا رائے 'ار'

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

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