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उम्र गुज़री عمر گزری





साभार गूगल

उम्र शिकवे शिकायत में गुज़री
बात कहते सारी रात ही गुज़री

कौन आग लगता रहा पानी में
सहर तो यूँ दामन बचाते गुज़री

ग़ुम गए वो सारे ख़्यालात कही
जिनको ढूँढ़ते ये ज़िन्दगी गुज़री

दुनियाँ तेरे बाजार में सौदाई सही
आब आँखों में लिए राह ये गुज़री

ये आँसू भी ग़वारा ना हुए ना सही
लबों पे हँसी भी 'अरु ' जां से गुज़री

आराधना राय 'अरु '
                                                                                                                                                               
عمر شکوے شکایت میں گزری
بات کہتے ساری رات ہو گزری
کون آگ لگتا رہا پانی میں
سحر تو یوں دامن بچاتے گزری
غم گئے وہ سارے خیالات کہی
جن ڈھوڑھتے یہ زندگی گزری
دنیا تیرے مارکیٹ میں سودائی 
آب آنکھوں میں لئے راہ یہ گزری
ارادھنا رائے 'ار'

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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

नज्म चाँद रात

हाथो पे लिखी हर तहरीर को मिटा रही हूँ अपने हाथों  से तेरी तस्वीर मिटा रही हूँ खुशबु ए हिना से ख़ुद को बहला रही हूँ हिना ए रंग मेरा लहू है ये कहला रही हूँ दहेज़ क्या दूँ उन्हें मैं खुद सुर्ख रूह हो गई चार हर्फ चांदी से मेहर  के किसको दिखला रही हूँ सौगात मिली चाँद रात चाँद अब ना रहेगा साथ खुद से खुद की अना को "अरु" बतला रही हूँ आराधना राय "अरु"