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बेवज़ह






जाने कौन बात कर गया था कहीं
कैसा वादा था कर  गया था कोई

बेवज़ह ही सताता रह गया था कहीं
ख़ुदा भी मुस्कुरा कर रह गया कोई

वो कौन था तेरे मेरे दरम्यां ही कहीं 
हर बात पे रंज सताता रहा यू कहीं 

परखा हर कसौटी पे ज़माने ने कहीं 
मेरी अना ही टूटी उस परख में कहीं 

बड़ी हसरतों का ज़नाज़ा उठा यू कहीं 
खाक़ कर  "अरु" बातें बनाता रहा कहीं 

आराधना राय 
Aradhana © 
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बेवज़ह- Meaning less. बिना बात 
अना- -Self- respect,  स्वाभिमान 
दरम्यां-middle/midst/interval, in-between" in ... बीच में 


  

तेरी मानिंद ही है, झील सा गहरा नफ़ासत वाला 
इस ज़माने से ही अलग सा  कहीं वो दिखने वाला 



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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

नज्म चाँद रात

हाथो पे लिखी हर तहरीर को मिटा रही हूँ अपने हाथों  से तेरी तस्वीर मिटा रही हूँ खुशबु ए हिना से ख़ुद को बहला रही हूँ हिना ए रंग मेरा लहू है ये कहला रही हूँ दहेज़ क्या दूँ उन्हें मैं खुद सुर्ख रूह हो गई चार हर्फ चांदी से मेहर  के किसको दिखला रही हूँ सौगात मिली चाँद रात चाँद अब ना रहेगा साथ खुद से खुद की अना को "अरु" बतला रही हूँ आराधना राय "अरु"