कलाम को श्रद्धांजलि
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रोता है ईश्वर भी यू अब तो
देख कलाम भी रूठ ही गया
क़ुरान कि इबादत रही उसकी
गीता का जीवन सार ही दिया
कर्तव्य, मेहनत और लगन से
ज़ीना ही उसने था सीख लिया
मंदिर , मस्जिद या हो गिरज़ा
उसने कर्मों को ही नमन किया
कैसे - कैसे हीरे सब यू ही खोये
हाय विधाता तू क्यों टूट गया
हाथ जोड़ कर हे तुझे ही ईश्वर
आज कलाम को नमन किया
दनियाँ के जंजाल में रह कर
"अरु" ये मनवा क्यू रो दिया
आराधना राय
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