ना जाने क्यों कोई साहिल से टकराया बरसों
गुज़रते वक़्त को ठहरा हुआ यू ही पाया बरसों
ना कारवां ना मंज़िल कोई कहीं भी पाया बरसों
इल्ज़ाम हमने खुद ही उठाये यहॉ पे कई बरसों
तुझ से अपने दिल का हाल सुनाया यू ही बरसों
रोये तेरे संग भी कभी मुस्कुराये हम कई बरसों
जा के वो क्यू ना आये कभी जो गए यहा से बरसों
वो हमें खुद ना कभी ढूंढ पाये अपने घर में बरसों
आराधना राय©
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