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तेरा हर बात गवारा है हमें
तेरी चुपी ही ने मारा है हमें
मृग तृष्णा अब कहाँ रहेंगी
नाव नदियाँ में ही जो बहेंगी
तेरी जीत पे हँस के जीते हम
तेरी हार पे भी यू हारे बस हम
थाम जीवन कि पतवार फिर
ले चल माँझी नाव पार फिर
यू तुम संग ये प्रीत लगा हम
हारे है सब कुछ "अरु" सनम
आराधना राय
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