उसे मेरा चेहरा इस तरह नागवार गुज़रा
वो मुझे बिना देखे ही सामने से ही गुज़रा
मेरी हर बात का ताल्लुक उस से रहा था
सफ़र में अनजान क्यों मुझ से ही रहा था
कितने हसीं ख्वाबों को रोज़ ही तोड़ा उसने
ये दिल ना तोड़ पाया जो उजड़ा खुद उसने
दिल के अरमान थे चलों नए फूल अब चुनें
उज़डा सा इक दयार है उसे सजा के ही चलें
ये तश्नगी मालूम है कुछ पल के लिए ही सही
तड़प सहरा कि है 'अरु' देख लो हमें यू ही सही
आराधना राय
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