ज़िंदगी हँस के यू बहल जाती तो अच्छा था
नया पैग़ाम सुना जाती तो कुछ अच्छा था।
रोज़ वादे कर के वो जाती तो कुछ अच्छा था
तेरा दिदार भी कुछ कराती बहुत अच्छा था
वो मुझ से रुख़्सत ना हुई होती तो अच्छा था
सुनहरा सा ख़्वाब दिखा जाती तो अच्छा था
सफऱ को मुक़ाम बना जाती तो ही अच्छा था
तराने सुना कर "अरु" जाते तो ही अच्छा था
आराधना राय
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