ज़िंदगी के दीये यू ही जला दिए
राह आसान ना थी रास्तों में घर बना दिए।
तेरी बात को गले यू ही लगा लिए
कौन था जिसने हर बार गहरे ज़ख़्म लगा दिए
करूँ क्या उन से में यू ही तौबा
जिन्होंने दूसरों के घर यू ही सरेआम जला दिए
जाने तुम क्यों ना सम्हल पाए
अपनी तमन्नाओं के लिए दूसरों के दामन जला दिए
ज़माने ने सौ दाग़ मुझे ही दिए
कई चराग़ जलने से पहले ही खुद खुदा बन बुझा दिए
हालत पर बात यू ही बना दिए
वक़्त ने मेरी आँख में "अरु" आँसू यू ही क्यों दे दिए
आराधना राय
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