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दे दिए




ज़िंदगी के दीये यू ही जला दिए 
राह आसान ना थी रास्तों में घर बना दिए। 

तेरी बात को गले यू ही लगा लिए
कौन था जिसने हर बार गहरे ज़ख़्म लगा दिए 

करूँ क्या उन से में यू ही तौबा
जिन्होंने दूसरों के घर यू ही सरेआम जला दिए 

 जाने  तुम क्यों ना सम्हल पाए 
अपनी तमन्नाओं के लिए  दूसरों के दामन जला दिए  

ज़माने ने  सौ दाग़ मुझे ही दिए
कई चराग़ जलने से पहले ही  खुद खुदा बन बुझा दिए  

हालत पर बात यू ही बना दिए
वक़्त ने मेरी आँख में "अरु"  आँसू यू ही क्यों दे दिए 

आराधना राय 
  







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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना