Skip to main content

बात दिल पर

तेरी हर बात दिल पर यू ही नक़्श कर ली 
तेरी खामोशियाँ भी हमने  ज़ज़्ब कर ली
 ज़िन्दगी ही  उथल -पुथल यू  ही कर ली
बात एक रोज़ बस सरेआम तुम से कर  ली
खुद रुस्वा हुए और इज़्ज़त बर्बाद कर ली
यूही अंधेरों कि सौगात अपने नाम कर ली
तेरे खातिर जीते ज़ी ज़िन्दगी बेनाम कर ली 
 आराधना राय 

Comments

Popular posts from this blog

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना