बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष
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यशोधरा बिरहन सी जब रोइ थी
सिद्धार्थ बिन नयनों को भगोई थी
पर ना डरी ना अपना निज खोई थी
प्रतीक्षा रत सज़ग पथ को निहारी थी
पी गए लोक हित को बिसार ना पाई थी
वो चिर -सुहागिन हो, सुहाग को खोई थी
अहिंसा , सत्य, शांति ,क्षमा वरद पाई थी
सिद्धार्थ , गौतम रूप हुए उनका मन पाई थी
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यशोधरा बिरहन सी जब रोइ थी
सिद्धार्थ बिन नयनों को भगोई थी
पर ना डरी ना अपना निज खोई थी
प्रतीक्षा रत सज़ग पथ को निहारी थी
पी गए लोक हित को बिसार ना पाई थी
वो चिर -सुहागिन हो, सुहाग को खोई थी
अहिंसा , सत्य, शांति ,क्षमा वरद पाई थी
सिद्धार्थ , गौतम रूप हुए उनका मन पाई थी
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