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ना पाया था

ना पाया था
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वो उसका दर था जहा मैंने सर झुकाया था
ये अलग बात है वो मुझे देख ना पाया था

मेरी  हर बात पहाड़े सी उसे ज़बानी याद थी
ये और बात है मुझे वो कभी कह ना पाया था

मेरे इकरार को इनकार उसने समझ लिया था
उसने मुड़ कर कभी हमें फिर देखा भी नहीं था

मेरी आँखों ने जाने क्यों उसका रस्ता निहारा था
ये और बात है उसे मेरे दिल ने बारहा पुकारा था
आराधना राय

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

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