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(हास्य व्यं ग) इश्क -मौहब्बत

तमाम इश्क -मौहब्बत के
अफ़साने अधूरे लगते है।
सीरी -फरहाद , हीर-राँझा,
 सोनी- महिवाल , ससि -पूनो
,रोमियो -जूलियट के फ़साने
 बहाने कि तरह लगते है।
मौत को बहला कर हो
गए वो फ़ना
मौहब्बत के लिए गर वो  जीते तो
बहलाते किस तरह
नून ,तेल लकड़ी में फसी
होती सीरी भी हीर भी सोनी भी
राशन कि लाइन में खड़े होते
फरहाद , राँझे , महिवाल ना जाने  किस तरह
या जुटे होते हरे पत्ते कमाने कि होड़ में
तब सीरी , ससि ,सोनी, हीर , जूलियट
लगी होती जीवन के अजीब -गरीब जोड़ में
अब ये बात सोच कर भी हँसी सी आई है
जीवन के उहा -पोस में मौहब्बत कहाँ बच पाई है।
आराधना राय 

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गीत---- नज़्म

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

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