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गज़लें अश्क में ढाली हुई


मेरे नाम दिन के उजाले हुए है
अंधेरों को हम क्यों पाले हुए  है

किन मज़बूरियों में  ढाले हुए  है
हालत तंग दिल में छाले  हुए  है

ख्वाब क्यों हमने फिर पाले हुए है
 हसरतों कि ख्वाहिशें जाने  हुए  है
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गर ज़िन्दगी तू ख्वाब है
क्यों हसरतों के नाम है


देख शिवालय भी गिरते  है
मरते है उफ नहीं करते है

लोग जीवन के लिए रोज़
मर कर भी यही उठते है


कौन सा कहर था आँखों पे
अश्क बन के जो निकलते  है

सिर्फ एक निवाले के लिए नहीं
ज़िंदगी जीने के लिए जलते है

मौत तू आ भी गई कहीं से गर
तेरे सामने हंस के गुज़रते से  है

ज़िन्दगी भूख सही दर्द  गम सही
अश्क  आँखों में भर के हँसते  है

आराधना
नेपाल त्रासदी पर
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कैसा ये शोर उठा ,हर तरफ कहर जारी
पत्थर दिल मोम हुए रूठी दुनियाँ  सारी

लगी हुई थी नर्तन करने चारों ओर तबाही
माँ से बच्चे अलग हुए यू टूटी दुनियाँ सारी

मिलने और बिछड़ने में ही लगा हुआ संसार
सब अपने अश्क़ में डूबे और बच्चे हुए अनाथ
आराधना राय





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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

नज्म चाँद रात

हाथो पे लिखी हर तहरीर को मिटा रही हूँ अपने हाथों  से तेरी तस्वीर मिटा रही हूँ खुशबु ए हिना से ख़ुद को बहला रही हूँ हिना ए रंग मेरा लहू है ये कहला रही हूँ दहेज़ क्या दूँ उन्हें मैं खुद सुर्ख रूह हो गई चार हर्फ चांदी से मेहर  के किसको दिखला रही हूँ सौगात मिली चाँद रात चाँद अब ना रहेगा साथ खुद से खुद की अना को "अरु" बतला रही हूँ आराधना राय "अरु"