ताने -बाने से सपनों के ही कही बुनती हूँ
समय कि चोरी होने भी घबराती नहीं हूँ
लम्हा लम्हा सा ज़िन्दगी को बांधती हूँ
डर रही हूँ या मैं अपने में जीती जा रही हूँ
यह भी नहीं अब तुझे बहलाना चाहती हूँ
खुल कर विरोध नहीं करती पूछती फिरती हूँ
अपनों पे मरना अधिकारों से लड़ना जानती हूँ
पराई पीर भी अब जी कर अभी यहाँ जीवित रही
जिस के लिए मर कर जीना भी अब मैं जानती हूँ \
आराधना
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