साभार गुगल इमेज़
यू अलग -विलग हो जैसे
नदी के दो तीर
बीच में बह रहा जीवन
शांत ,धीर ,गंभीर
प्रणय कलापों से दूर
कर्मों के वीर
धरे मस्तक पर अपने
नित नई पीर
ध्वस्त हो जब आडंबर पड़े
समाज कि नव नींव
कितने कुचले रीति के नीचे
हूए म्लान ,क्लांत
नहीं राज्य तम का गहराये
जब आलोकित हो दीप
आराधना राय
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