जाने क्या ये सोच कर वो है बस मेरी मंज़िल
तकदीर बनकर नज़र आता है वो फ़िर कोई
थोड़े गम और सुख उस में रोज़ यू ही देकर
चाहने वाला चला आता है हर बार जाने कोई
हम तो मरते रहे है तन्हा इसी ख़ामोशी से
ज़िंदा हूँ याद दिलाता है जाने हर बार कोई
दिया जलता है रात भर खामोशियों में कोई
आंधियों ने कसर ना छोड़ी इस बार कोई
कॉपी राइट @आराधना राय
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