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जीवन संग्राम




साभार गुगल इमेज़




जीवन संग्राम इस बार भी कहा  हो गया
हर कोई ज़ुल्म का शिकार यहाँ हो गया

ज़द्दोज़हद में झूठ का बोल बाला हो गया
आदमी खून कर के खुद भगवान हो गया

दुराचार , व्यभिचार का शिकार भी हो गया
हर घड़ी , रक़्स , ज़ुल्म सितम यही हो गया

अपनों के सुख दुसरो के दुख देख खुश हो गया 
जहां में हर कोई एक दूसरे से परेशान  हो गया
कॉपी राइट @आराधना राय

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

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