रेख़्ती *देवनागरी लिपि में
चाँद फिर दरीचों से तो झाँकता है
बात ख़्वाब सी हर कोई करता है
आहटें रोज़ सुनती है सूखे -पत्तों कि
वक़्त के आने और तेरे चले जाने कि
कड़ी बांध कर चलते रहे , सहराओं में
रेत पर चलते रहे ,यू ना जाने कब तक
थे सहे ज़ुल्म मैंने तन्हा साल दर साल
क्यू तेरे आँख में है नमी अब ये आई है।
आराधना उर्दू बज़्म में सिर्फ अना हिंदी नाम का संक्षिप्ति करण।
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