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क्या चाहती हूँ



गीत हुँ मै, गुनगुनाना चाहती हूँ।
धूल हुँ मैं , पलकों उठना चाहती हूँ। 

पूर्णता -अपूर्णता नहीं जानती हूँ। 
क्षुब्ध हुँ पर मैं जीवन चाहती हूँ। 

टूटे पत्थरों को दिन-रात जोड़ती हूँ । 
कौन सी ज़िद्द है नहीं ये जानती हूँ । 

एक मैं देवालय बनाना चाहती  हूँ। 
देव उसमें खंडित बसाना चाहती हूँ।


copyright : Rai Aradhana ©






बहुत याद आई फिर बचपन की अपने,
दूर बहुत दूर जब सपने सजा करते  थे ।

पास आ जाता था मन का आकाश भी,
सीमा से परे जाती मन की कल्पना थी।

मुट्ठियों में जब बांध जाता  आकाश  था
हिरन की कुलाचे भरते भागते  मन  थे।

फिर याद आया वो बीता जमाना मुझे
बड़ा  दीवाना ज़माना ये  लगा था मुझे।
आराधना


copyright : Rai Aradhana ©







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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना