बिन बादल बरसात ना होगी
धरती के सूखे कोनों में
दर्द कि कोई बात सी होंगी
मन के खाली पन्नों पे
वो ही मधुर मुस्कान खिलेंगी
धरती,अम्बर कि पलकों पे
फिर नव श्रृंगार होगा सुसज्जित
धरती के कोने कोने में
आराधना
छाया वाद से प्रभावित रचना
शुष्क रहे क्यों बने मलान
जब जीवन होगा स्वर्ण विहान
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