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इकरार





वो बच गया सौ-सौ ख़ून कर के भी
हम ही  तड़पे   इकरार कर के भी।

न कोई  शिकवा ना कोई  गिला था
 जो मिला  था नसीब से ही मिला था

तुम्हारी पेशानियों  पर, जो सलवटे हैं
मेरी ही सोच के ये सब  सिल-सिले  है

तुम्हारी बातें मेरी ज़हन को लुभाती है
मेरी हर सोच में  कहीं बस से गये  हो

गज़ब सी दांस्ता मेरी अजब आरजू है
न बन सकी कभी , न बिगाड़ी गई  है।

हर एक बात उसकी कुछ लाज़मी सी  थी
अंदाज़ भी बड़ा हीं उसका आशिक़ाना था

यही हर बार हंस कर सोचते क्यों "अना"
जो कल तलक अपना था आज बेगाना  है 

  आराधना ''अना''संक्षिप्त नाम का  उर्दू में अना का मतलब है    self-respect 





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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना