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फिर आऊँगी پھر اوگي






तुझसे बिछड़ी तो मैं
 फिर  बिखर जाऊँगी।

फिज़ाओ में मैं  तुझे
रंग बन के पाऊँगी।

भीगते सावन में मै
बारिश  बनके आऊँगी।                              

बूंद -बूंद बरसूँगी मैं
आँखो से भीगा जाऊँगी।

बेक़रार तमन्ना लिए
सहर बन के आऊँगी।      


copyright : Rai Aradhana ©
आराधना              

تجھسے بچھڑی تو میں
 پھر بکھر جاؤں گی.

پھذاو میں میں تجھے
رنگ بن کے پاوںگی .
بھيگتے ساون میں مے
بارش بن کے اوگي .

بوند -بود برسوگي میں
آںکھو سے بھیگا جاؤں گی.

بےقرار تمنا لئے
سحر بن کے اوگي .

ارادھنا

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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना