कहानी धरती अम्बर की
एक रोज़ जब अम्बर की
एक रोज़ जब अम्बर की
धरती से मुलाक़ात हूई।
मंद -मंद मुस्कान लिये
धरती को देख कर बोला,
थकती नहीं मुझे तकते हुए
बाहें फैलाये कब से खड़ा हूँ
तुम देखती नहीं हँसते हुए।
दो पल वो चुप रही फिर बोली
पेड़ नाचते है, फूल खिलते है
क्या देखा नहीं मुझे हँसते हुए
क्षितिज के पास अम्बर हंसा
हल्की सी फिर से फ़ुहार उड़ी।
तेरा मेरा फिर ये नाता क्या है
उसने हैरान हो फिर से पूछा।
ना जाने कैसी वो बयार चली
धरती कुछ भी ना बोल सकी।
मैं बंधी रही हूँ चाँद और सूरज से
तुम बंधे निशा ,संध्या , तारों से
तुम जब बरसाते हो बादल अपने
मेरे घर आँगन चमक से जाते है
तुम मुझे देख कर मुस्कुराते हो
मैं तुम्हे देख कर खुश हो जाती हूँ
नहीं जानती क्या है नाता तुम से
बंधू ,सखा, सहोदर , गुरु, प्रेमी हो
तुममें सारा संसार दिख जाता है
मित्रवत व्यवहार तुम्हारा भाता है
ना पूछना मित्र कौन सा ये नाता है
आराधना
क्षितिज के पास अम्बर हंसा
हल्की सी फिर से फ़ुहार उड़ी।
तेरा मेरा फिर ये नाता क्या है
उसने हैरान हो फिर से पूछा।
ना जाने कैसी वो बयार चली
धरती कुछ भी ना बोल सकी।
मैं बंधी रही हूँ चाँद और सूरज से
तुम बंधे निशा ,संध्या , तारों से
तुम जब बरसाते हो बादल अपने
मेरे घर आँगन चमक से जाते है
तुम मुझे देख कर मुस्कुराते हो
मैं तुम्हे देख कर खुश हो जाती हूँ
नहीं जानती क्या है नाता तुम से
बंधू ,सखा, सहोदर , गुरु, प्रेमी हो
तुममें सारा संसार दिख जाता है
मित्रवत व्यवहार तुम्हारा भाता है
ना पूछना मित्र कौन सा ये नाता है
आराधना
तुम में हरपल ये क़ायनात भी
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