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हर लड़की








साभार गूगल इमेज
सड़क पर चलती
हर लड़की
कहीं भी दिखी
आदमी को
मांस  का टुकड़ा
 भर ही लगी
देखा जिसने भी
सिर्फ लड़की
तुझे बस एक जिस्म
  सा देखा
औरत तू महज़ एक
 खिलौना है
तेरी सोच भी कुछ
 तो रही होगी
भागती भीड़ में
कहीं तू भी यही
दुःख के अहसास में
भरी होगी
काश जान पाता
 हर कोई
जिस्म से अलग
 तू कोई जान
 होगी एक
,मरियम सी
सीता , सी  या
रेहाना  सी
किसी कि
नज़रें क्यों
हो वहशहना सी

@ कॉपी राइट आराधना






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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

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गीत हूँ।

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