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! कौशल !: संस्कृति रक्षण में महिला सहभागिता

! कौशल !: संस्कृति रक्षण में महिला सहभागिता
हुजूम सड़कों पे क्यू आज तारी 
वक़्त -बे वक़्त भीड़ हैक्यू  ज़ारी

हाथ में मोमबत्ती लिए ये  साथ
संवेदनाओं से उलझते हूए  हाथ

राह में गर दिया होता कभी साथ
यू न जलते ,उलझते ये सब साथ

चीख , चीत्कार को जब सुन पाये
 वक़्त पर साथ क्यू  ना तूम आये

क्यों छिड़ी है जंग सड़कों पर आज
क्यों किसी बात को ना समझ पाए

नुचती रहेगी ,जलती बिखरती रहेंगी
जब कहीं कभी भी कोई देगा ना साथ

भीड़ कि आवाज़ भी ये उठती रहेंगी
जब तक ना होगी कभी न्याय से बात
आराधना
http://aradhanakissekahaniyan.blogspot.in/

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना