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नज़्म बेवज़ह नहीं



कोई वादा नहीं फिर भी क्यू  तेरा इंतज़ार करती हूँ
अपनी तन्हाइयों में अक्सर दिल कि बात करती  हूँ।

बेवज़ह तो नहीं ये सब बातें,या  यू ही बेक़रार रहती हूँ
जाते हुये से इस पल में ,नींद से ख़्वाब क्यू मैं  चुनती हूँ।

कोई सुन ले ना ज़बां से बस उफ ,होठो को सिये रहती हूँ
चुप हूँ ख़ामोश हूँ मैं ,अपनी आँखों से ही मैं बात करती हूँ।

आराधना


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राहत

ना काबा ना काशी में सकूं मिला दिल को दिल से राहत थी जब विसाल -ए -सनम मिला। ज़िंदगी का कहर झेल कर मिला बीच बाज़ार में खुद को  नीलम कर गया यू  हर आदमी मिला राह में वो इस तरह कोई चाहतों से ना मिला रूह बेकरार रहे कोई "अरु" और वो अब्र ना कभी हमसे यू मिला आराधना राय copyright :  Rai Aradhana  ©

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

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