रक़्स और रक्त के खेल जारी है जब
कैसे गाए ये मन कैसे आये वसंत।
सूनी - सुनी पड़ी ,गावों की गलिया
शहर भी दर्द से चीखता ही रह गया।
कैसी अर्थी उठी किसी दुल्हन की फिर
कैसी थी कामना चिर सुहागिन गई।
कैसे है लोग दर्द जिनको होता नहीं
कैसी बेचारगी जो बोल सकते नहीं।
लोभ -लाभ की बात मुखरित रही
प्रेम और प्रीत की भाषा खंडित हुई।
कल जो मिट गए ,सड़क के मोड पर
थे वो भी किसी के बेटे और बेटियाँ।
चुपी साधे रहे,शहर के बेशर्म रास्ते
गाँव की गली भी सर झुकाए खड़ी।
तू है राहगीर ,तो चोर समझेगे सब
तू मुसीबत ज़दा कब ये मानेंगे अब।
रात में मौत सड़कों पर चलती है अब
रक्त से रजित पड़े थे किसी के लाडले।
स्वयं विधता भी देखकर दुखी हो गया
होड़ कैसी लगी ,नर और नारी में अब।
माँ की लोरी कोई भेद समझी है कब।
गौर से एक दिन हम भी सोचें बस ज़रा
रक्त और रक्स हम पे क्यू हावी हुआ।
जब ये जीवन मिला था ज़ीने के लिए
खेल ही खेल में दावानल सा बन गया ।
प्रश्न है अनुत्तरित ,सारे उत्तरों के क्यों
भोर भी भोर होने से यहाँ डरती है क्यों।
मन की कोपले जहाँ मुरझाती ही रही
जिव्हा भूली है शब्द और गीत मौन है।
कैसे आये वसंत ,तेरे मेरे स्वप्न का
कहो कैसे गाये कहो किससे सब कहे।
आराधना
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