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फ़लसफ़ाفلسفہ





बहुत हुआ अब तो ये खेल बंद करो
पास बैठो मुस्कुराओ बातें चंद करो

तमाम उम्र  गुज़रीं रुठने मनाने में
कोई नई बात जोड़ों इस फ़साने में

एक मुस्कुराहट मांगते ही हम थके
 ज़माना लगेगा बीती बातें भुलाने में

तुझको मालूम है 'अरू ' उदासी का सबब
मुझपे इलज़ाम तो लगा मेरी जानिब से
आराधना
copyright : Rai Aradhana ©






فلسفہ 

بہت ہوا اب تو یہ کھیل بند کرو
پاس بیٹھو مسکراہٹ باتیں چند کرو

تمام عمر گذري رٹھنے منانے میں
کوئی نئی بات جوڑوں اس فسانے میں

ایک مسکراہٹ مانگتے ہی ہم تھکے
  زمانہ لگے گا بیتی باتیں بھلانے میں

تجھکو معلوم ہے 'انا' اداسی کا سبب
مجھپے الزام تو لگا میری جانب سے
ارادھنا




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नज़्म

अब मेरे दिल को तेरे किस्से नहीं भाते  कहते है लौट कर गुज़रे जमाने नहीं आते  इक ठहरा हुआ समंदर है तेरी आँखों में  छलक कर उसमे से आबसर नहीं आते  दिल ने जाने कब का धडकना छोड़ दिया है  रात में तेरे हुस्न के अब सपने नहीं आते  कुछ नामो के बीच कट गई मेरी दुनियाँ  अपना हक़ भी अब हम लेने नहीं जाते  आराधना राय 

ग़ज़ल

लगी थी तोमहते उस पर जमाने में एक मुद्दत लगी उसे घर लौट के आने में हम मशगुल थे घर दिया ज़लाने में लग गई आग सारे जमाने में लगेगी सदिया रूठो को मानने में अजब सी बात है ये दिल के फसाने में उम्र गुजरी है एक एक पैसा कमाने में मिट्टी से खुद घर अपना बनाने में आराधना राय 

नज़्म

 उम्र के पहले अहसास सा कुछ लगता है वो जो हंस दे तो रात को  दिन लगता है उसकी बातों का नशा आज वही लगता है चिलमनों की कैद में वो  जुदा  सा लगता है उसकी मुट्टी में सुबह बंद है शबनम की तरह फिर भी बेजार जमाना उसे लगता है आराधना