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ना कुछ सत्य है ,ना शिव और ना कुछ सुन्दर है





ना कुछ सत्य है ,ना शिव और ना कुछ सुन्दर है
जीवन-तू क्या है बस दुःख का अथाह समुन्दर है

आती-जाती श्वासों की इन लहरों में कोलाहल सा
बसा हुआ निश्वासों का उत्ताप मचाता जीवन सा

अधरों पर बन कर एक पहचान अमित चिन्ह   सा
या अंत समय आये कोई अनचीन्हे एक अतिथि सा

गरिमा सुख की कब कहो सलिल सरित सा बहती थी
विश्वास के चन्द्र जब  लहरों में ज़्वार -भाटा  लाते थे   


हर पल तेरे इन नयनो ने तूफान छिपा सा रहता है
हर पल मेरी ही बातें वेग कुछ   समय का छलती है

जीवन तू छीन-भिन  है उच्छल सा मेरे  सपनों सा
तू  जीवन क्षुधा -तृषित मरीचिका मृग तृष्णा सा
आराधना  copyright : Rai Aradhana ©

एक शब्द आपने दिया था पापा एक शंब्द मैंने लगा कर आपकी कविता पूरी की पर आप के जाने के बाद 

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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

नज्म चाँद रात

हाथो पे लिखी हर तहरीर को मिटा रही हूँ अपने हाथों  से तेरी तस्वीर मिटा रही हूँ खुशबु ए हिना से ख़ुद को बहला रही हूँ हिना ए रंग मेरा लहू है ये कहला रही हूँ दहेज़ क्या दूँ उन्हें मैं खुद सुर्ख रूह हो गई चार हर्फ चांदी से मेहर  के किसको दिखला रही हूँ सौगात मिली चाँद रात चाँद अब ना रहेगा साथ खुद से खुद की अना को "अरु" बतला रही हूँ आराधना राय "अरु"