ना कुछ सत्य है ,ना शिव और ना कुछ सुन्दर है
जीवन-तू क्या है बस दुःख का अथाह समुन्दर है
आती-जाती श्वासों की इन लहरों में कोलाहल सा
बसा हुआ निश्वासों का उत्ताप मचाता जीवन सा
अधरों पर बन कर एक पहचान अमित चिन्ह सा
या अंत समय आये कोई अनचीन्हे एक अतिथि सा
गरिमा सुख की कब कहो सलिल सरित सा बहती थी
विश्वास के चन्द्र जब लहरों में ज़्वार -भाटा लाते थे
हर पल तेरे इन नयनो ने तूफान छिपा सा रहता है
हर पल मेरी ही बातें वेग कुछ समय का छलती है
जीवन तू छीन-भिन है उच्छल सा मेरे सपनों सा
तू जीवन क्षुधा -तृषित मरीचिका मृग तृष्णा सा
आराधना copyright : Rai Aradhana ©
एक शब्द आपने दिया था पापा एक शंब्द मैंने लगा कर आपकी कविता पूरी की पर आप के जाने के बाद
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