खामोश हो बहुत कुछ बोलती है
ना जाने कैसे कैसे राज़ खोलती है
जुबां चुप रही मगर नज़र बोलती है
दूर से ही ख्वाबों को बस देखती है
फिर कोई ख्वाब बन हमें उठता है
क्यू चमक उठती है आँखे मेरी ,
क्यू कई ख्वाबों ने दस्तक दी है,
तेरे साथ वफ़ा का किया एहतराम
पासबा तेरे होके ज़फा बोलती है
हम ही अनजान थे रस्म -ए- दुनिया से तेरी
ढूंढा किये वफ़ाओ को भी अदाओं में तेरी
बहाना बना कर हमें ज़िन्दगी बोलती है
copyright : Rai Aradhana ©
एक ऐसा भी दौर गुज़रा हम पे
समंदर में किश्तियाँ डुबो आये
पास क्या आया जाना ही नहीं
बेखौफ तन्हाइयों से मिल आये
रस्में दुनियाँ से क्यों करें शिकवा
कैसे नादान थे जो ना समझ पाये
मेरे माज़ी को मेरी ही तलाश रही
हम ना जाने कहीं और ढूंढ आये
फिर किसी गुमशुदा की तलाश करे
क्या पता इक रोज़ हमें मिल जाये
मासूम सी बेलौस हसरतें हैं ये ''अरू ''
ज़िंदगी इन से ही फिर शुरू की जाये
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