ग़ज़ल
पास जो रखी है वो तस्वीर तुम छिपा देना
अपने ख्वाबों की तावीर खुद ही मिटा लेना
ग़र्क़ चुपचाप ज़र्रे -ज़र्रे आँसु को कर देना
अपने निशां खुद से ही यू तुम मिटा लेना
सब के इल्ज़ाम सर खुद कुछ यू उठा लेना
आग दामन में तुम अपने ही खुद लगा लेना
कोई दर ख्वाब का देखा ही नहीं कभी तुमने
हर रोज़ अपने को यू ही तुम बस बहला लेना
कोई उम्मीद खुद से ही ना तुम बढ़ा लेना
बेवफ़ा को फिर कहीं बा-वफ़ा ना बना देना
वादे तो वादे हैं बस क्या उन पे भरोसा करना
चाक खुद अपना ज़िगर ना तुम कहीं कर लेना
उन के पहलू में क्यू ज़ार-ज़ार हम रोए "अरू "
हम ने सीखा ही नहीं उन से किनारा कर लेना
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