गीतों के बोलो से , निकली हो जैसे वीणा की झंकार ,
अश्रु की धारा से व्यथित ह्रदय से निकली हो कोई बात
दुःख ने पहचानी , दुःख के मौन क्रंदन की भी आवाज़
ठहर गया समय , या बीतते पलो ने कह दी अपनी बात
कहानी सी , ढली अश्रुओं से भीगा ,निकला एक काव्य
स्पंदन रहित हो हृदय ,करता रहा पुकार बस बारम्बार
पाती थी दुःख की या छिड़ा था जैसे कोई विहंगम राग
शेष , रह गया ,लालिमा से उष्मित , रंजित आकाश ,
तूलिका उर्फ़ आराधना
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